What is chhath puja in Hindi |छठ पूजा क्या है .
छठ पूजा क्या है | What is chhath puja in Hindi
छठ पूजा एक प्राचीन महोत्सव है जिसे दिवाली के बाद छठे दिन मनाया जाता है। छठ पूजा को सूर्य छठ या डाला छठ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। छठ पूजा को बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न महानगरों में मनाया जाता है। वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की अराधाना से होती है। शब्द “छठ” संक्षेप शब्द “षष्ठी” से आता है, जिसका अर्थ “छः” है, इस लिए यह त्यौहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठे दिन, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष पर मनाया जाता है। कार्तिक महीने की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाने वाला ये त्यौहार चार दिनों तक चलता है। मुख्य पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के छठे दिन की जाती है।
छठ पूजा का महत्त्व
घर-परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता के लिए छठ पूजा का व्रत जुड़ा हुआ है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति, पत्नी, पुत्र, पौत्र सहित सभी परिजनों के स्वास्थ्य की मंगल कामना करना है। Chhath का अभ्यास मानसिक शांति भी प्रदान करता है। छठ के दौरान हवा का नियमित प्राणिक प्रवाह गुस्सा, ईर्ष्या और अन्य नकारात्मक भावनाओं को कम करने में मदद करता है।
हमारे देश में सूर्य उपासना के कई प्रसिद्ध लोकपर्व हैं जो अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाए जाते हैं। मॉरिशस, त्रिनिदाद, सुमात्रा, जावा समेत कई अन्य विदेशी द्वीपों में भी भारतीय मूल के निवासी Chhath पर्व को बड़ी आस्था और धूमधाम से मनाते हैं।
“यह उत्सव सूर्य के प्रति कृतज्ञता दर्शाने का दिन है। सूर्य हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हमारे अस्तित्व का आधार ही सूर्य है। इसमें सूरज को अर्घ्य देना, यानी सूरज को देखना, आवश्यक है और यह सिर्फ सुबह या शाम के वक्त किया जा सकता है। अब सवाल उठता है, कब तक सूरज को देखने की आवश्यकता है? आप अपने हाथों में पानी धारण करते हैं और पानी धीरे-धीरे उंगलियों से निकल जाता है, तब तक ही सूर्य को देखा जाता है। सूरज को देखने से आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान होती है। इसलिए, पूजा मुख्य रूप से सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए की जाती है।”
छठ पूजा का इतिहास | छठ पूजा की कहानी |
Chhath Puja story behind it in Hindi | Story of Chhath Puja in Hindi
यह माना जाता है कि छठ पूजा का उत्सव प्राचीन वेदों मैं स्पष्ट रुप से बताया गया है, क्योंकि पूजा के दौरान किए गए अनुष्ठान ऋग्वेद में वर्णित अनुष्ठानों के समान हैं, जिसमें सूर्य की पूजा की जाती है। उस समय, ऋषियों को सूर्य की पूजा करने के लिए भी जाना जाता था और अच्छे सेवन किए बिना वे अपनी ऊर्जा सीधे सूर्य से प्राप्त करते थे।
ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में महान ऋषि धौम्य की सलाह के बाद, द्रौपदी ने पांडवों को कठिनाई से मुक्ति दिलाने के लिए छठ पूजा का सहारा लिया था। इस अनुष्ठान के माध्यम से, वह केवल तत्काल समस्याओं को हल करने में सक्षम रही ऐसा ही नहीं, लेकिन बाद में, पांडवों ने हस्तिनापुर (वर्तमान दिन दिल्ली) मैं अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया था। ऐसा कहा जाता है कि कर्ण, सूर्य (सूरज) के पुत्र, जो कुरुक्षेत्र के महान युद्ध में पांडवों के खिलाफ लड़े थे, ने भी छठ का अनुष्ठान किया था। पूजा का एक अन्य महत्व भगवान राम की कहानी से भी जुड़ा हुआ। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, राम और उनकी पत्नी सीता ने उपवास किया था और 14 साल के निर्वासन के बाद शुक्ल पक्ष में कार्तिक के महीने में सूर्य देव की प्रार्थना की थी। तब से, छठ पूजा एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू उत्सव बन गया, जिसे हर साल उत्साह से मनाया जाता है।
लोकप्रिय विश्वास यह भी है कि सूर्य भगवान की पूजा कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों को भी समाप्त करती है और परिवार की दीर्घायु और समृद्धि सुनिश्चित करती है। यह सख्त अनुशासन, शुद्धता और उच्चतम सम्मान के साथ की जाती है। और एक बार जब एक परिवार छत पूजा शुरू कर देता है, तो ये उनका कर्तव्य हो जाता है कि वह परंपराओं को पीढ़ियों तक पारित करे।
छठ पूजा उत्सव
1. प्रथम दिन
छठ पूजा के पहले दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बना दिया जाता है। इसके पश्चात् छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने “शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोंपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू,चने की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। इस दिन, भक्तों कोशी, करनाली और गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं, और प्रसाद तैयार करने के लिए यह पवित्र जल घर लेकर जाते हैं।
2. दूसरा दिन
दूसरे दिन कार्तिक “शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद “शाम को भोजन करते हैं, इसे ‘खरना’ कहा जाता है। ‘खरना’ का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किए जाते है। प्रसाद के रूप में मिट्टी के चूल्हे पर गुड एवं चावल की खीर और रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। पूजा के दौरान किसी भी बर्तन का उपयोग नहीं किया जाता है। पूजा करने के लिए केले के पत्तों का प्रयोग करते हैं। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। भेंट लेने के बाद, वे 36 घंटे बिना पानी के उपवास करते हैं।
3. तीसरा दिन
तीसरे दिन कार्तिक “शुक्ल शष्ठी” के दिन में मिट्टी के चूल्हे पर छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहतें हैं। ठेकुआ के अलावा चावल के लड्डू बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया लौंग, बड़ी इलाइची, पान-सुपारी, अग्रपात, गड़ी-छोहड़ा, चने, मिठाइयां, कच्ची हल्दी, अदरख, केला, नींबू, सिंहाड़ा, सुथनी, मूली एवं नारियल, सिंदूर और कई प्रकार के फल छठ के प्रसाद के रूप में शामिल होते हैं। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है और व्रत के साथ परिवार और पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठ व्रत एक पवित्र नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से स्त्रियां छठ के गीत गाती हैं। इसके बाद अर्घय दान सम्पन्न करती हैं। सूर्य को जल का अघ्र्य दिया जाता है और छठी मईया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृष्य बन जाता है। सूर्यास्त के बाद सारा सामान लेकर सोहर गाते हुए सभी लोग घर आ जाते हैं और अपने घर के आंगन में एक और पूजा की प्रक्रिया प्रारंभ करते है। जिसे कोशी कहते हैं। यह पूजा किसी मन्नत के पूर्ण हो जाने पर या कोइ घर में “शुभ कार्य होने पर की जाती है। इसमें सात गन्ने, नये कपड़े से बांधकर एक छत्र बनाया जाता है जिसमें मिट्टी का कलश या हाथी रखकर उसमें दीप जलाया जाता है और उसके चारों तरफ प्रसाद रखे जाते हैं। सभी स्त्रियां एकजुट होकर कोशी के गीत गाती हैं और छठी मईया का धन्यवाद करती हैं।
4. चौथा दिन
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं। व्रत उसी जगह पुन: इकट्ठा होती हैं। जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। कोशी की प्रक्रिया यहां भी की जाती है। इसके बाद पुन: पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृति होती है। इसके बाद व्रत कच्चे दूध से उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अंत में व्रत अदरक, गुड़ और थोड़ा प्रसाद खाकर पूर्ण करते है।
मुख्य उत्सव छठ के तीसरे दिन पर मनाया जाता है, जब सूर्य देव की आराधना सूर्य नमस्कार और फल से की जाती है।